रविवार, 10 मई 2015

मां ...

मां के आंचल से  दूर
आज जिंदगी  को देखा
घनी धूप,  और
ठहरी हुई  छांव  को देखा

जब पास था , तो  कितना दूर था
बात -बात  पर उनका हाथ  छूटता  था
आज हर डगमगाते  कदमों पर उनका
संभालना आंखों ने देखा
गर्मी की तपती दोपहर
और ठंड  की सर्द रातों में
आंचल  की  ठंडी  छांव  और
गर्म  एहसास  को देखा

अब जब भी  कभी
भगवान  को देखता हूं
तो लगता है कि
आज फिर  मैंने  अपनी
मां को देखा !!

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