रविवार, 10 मई 2015

मां ...

मां के आंचल से  दूर
आज जिंदगी  को देखा
घनी धूप,  और
ठहरी हुई  छांव  को देखा

जब पास था , तो  कितना दूर था
बात -बात  पर उनका हाथ  छूटता  था
आज हर डगमगाते  कदमों पर उनका
संभालना आंखों ने देखा
गर्मी की तपती दोपहर
और ठंड  की सर्द रातों में
आंचल  की  ठंडी  छांव  और
गर्म  एहसास  को देखा

अब जब भी  कभी
भगवान  को देखता हूं
तो लगता है कि
आज फिर  मैंने  अपनी
मां को देखा !!

पिता...


पिता होने का मतलब, ये सारा आकाश है,
जो जेठ की तपती दोपहरी में,
अपनी नंगी पीठ पर सेंकता है,
जलता हुआ सूरज 
सिर्फ इसलिए की  बच्चों को 
मिल सके दो वक़्त की रोटी 
तन ढकने को कपड़ा और एक आसरा 
ज़िन्दगी की चक्की में 
कोल्हू के बैल सा 
वोह सिर्फ इसलिए खटता है 
की उसके बच्चों को मिल सके
बेहतर  परवरिश, अच्छे संस्कार और एक पहचान 
चहरे पैर सिकुड़ती झुर्रियां 
माथे पर पड़े बल 
धुंधलाई  आँखों से वो भूखे पेट 
सपने संजोता है 
सिर्फ इसलिए की उसके बच्चे 
छू सकें आकाश की ऊंची बुलंदियों को ........